याद आते हैं वो दिन जब मुहब्बत थी ताज़ा
फितूर भी था, मगर जोश था ज़्यादा
कभी खोने का डर, तो कभी पाने की आस
कुछ फ़िज़ूल वाकिए बन जाते थे ख़ास
वो लव्ज़ जो हम कह न सकते थे
हमारी नज़रें बयां करती थीं
जो नज़दीकियों से समझ न पाते थे
वो बातें दूरियों में रहती थी
वो फ़ासले, फैसले बनकर
हम दोनों के दरमियाँ आते थे
और तभी हम इत्तफ़ाक़न मिल जाते थे
इस वक़्त को गुज़र जाने दो
इस सफर का मुक़ाम दूर है
आसान नहीं कुछ ख़ास पाना
मुश्किल है ख़्वाबों का महल बनाना
जिसे फासलों का था न कोई डर
अब है बस खौफ फिर से दूर जाने का
ये वक़्त है करीब आने का
एक बार फिर से अपना घर बनाने का !
फितूर भी था, मगर जोश था ज़्यादा
कभी खोने का डर, तो कभी पाने की आस
कुछ फ़िज़ूल वाकिए बन जाते थे ख़ास
वो लव्ज़ जो हम कह न सकते थे
हमारी नज़रें बयां करती थीं
जो नज़दीकियों से समझ न पाते थे
वो बातें दूरियों में रहती थी
वो फ़ासले, फैसले बनकर
हम दोनों के दरमियाँ आते थे
और तभी हम इत्तफ़ाक़न मिल जाते थे
इस वक़्त को गुज़र जाने दो
इस सफर का मुक़ाम दूर है
आसान नहीं कुछ ख़ास पाना
मुश्किल है ख़्वाबों का महल बनाना
जिसे फासलों का था न कोई डर
अब है बस खौफ फिर से दूर जाने का
ये वक़्त है करीब आने का
एक बार फिर से अपना घर बनाने का !